Monday, November 18, 2019

गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है, जो चाहे लगा दो डर कैसा

कब याद में तेरा साथ नही, कब हाथ में तेरा हाथ नही 
सद शुक्र के अपनी रातों में, अब हिज्र की कोई रात न

मुश्किल है अगर हालात वहां, दिल बेच आयें जां दे आयें 
दिल वालो कूचा-ऎ-जानां, क्या एसे भी हालात नही

जिस धज से कोई मकतल में गया वो शान सलामत रहती है
ये जान तो आनी जानी है, इस जां की तो कोई बात नही

मैदान-ए-वफ़ा दरबार नही, यां नाम-ओ-नसब की पूछ कहां
आशिक़ तो किसी का नाम नही, कुछ इश्क़ किसी कि जात नही

गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है, जो चाहे लगा दो डर कैसा
गर जीत गये तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नही





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