Tuesday, February 26, 2013

कर लेता हूँ बस यूँ ही मैं कुछ शेर-ओ-शायरी, वरना तो मैं दिल से बहुत ही खुशमिजाज हूँ

( शायरी # 1 )

क़रीब है यार रोज़े महशर ,

छुपेगा कुश्तों का खून कब तक ?

जो चुप रहेगी ज़ुबान-ए-खंज़र,

लहु पुकारेगा आस्तीन का !
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तू अगर दोस्त है तो नसीहत ना कर खुदा के लिए...

मेरा ज़मीर ही काफी हैं मेरी सज़ा के लिए...
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चढ़ती थीं उस मज़ार पर चादरें बेशुमार

बाहर बैठा कोई फ़क़ीर सर्दी से मर गया

~ अनजान

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चेहरों के लिए आईने कुर्बान किये हैं ,

इस शौक में अपने बड़े नुकसान  किये हैं ।

महफ़िल में मुझे गालियाँ देकर है बहुत खुश,

जिस शख्स पर मैंने बड़े एहसान किये हैं ।

----   राहत इन्दौरी
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Udtee huyee nigaah se bhala kya jaan sakogey

Ibaarat hain zindagi, hum akhbaar nahin hain -

--- Irshaad Kaamil
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Phool sa taaron sa koi humsafar mat dhoondhiye

Patharon se hi nibhaiye, dil jigar mat dhoondhiye

Main sakoon ki qaan, mera shor se kya vaasta

Mere andar gaon hain, hazrat shehar mat dhoondhiye - 

--- Irshaad Kaamil
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Apni apni raah pe chal raha hai har bashr

Kaun kisko kya kahe kaun kis manzil pe hai

---  Irshaad Kaamil
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आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं

सामान सौ बरस का हैं पल की खबर नहीं
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मौसम-ए-बहार करे सजदा सुबहो शाम तुझे

अलावा मुस्कुराने के ना रहे कोई काम तुझे...

--- सुरेन्द्र मोहन पाठक
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शहर क्या देखें, के हर मंज़र में जाले पड़ गए,

ऐसी गर्मी है, कि पीले फूल काले पड़ गए।

मैं अँधेरों से बचा लाया था अपने आप को,

मेरा दुख ये है, मेरे पीछे उजाले पड़ गए।

----  राहत इंदौरी
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अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे।

फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे.

ज़िन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे ,

अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे।

----  राहत इंदौरी
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कर लेता हूँ बस यूँ ही मैं कुछ शेर-ओ-शायरी,

वरना तो मैं दिल से बहुत ही खुशमिजाज हूँ |

----- अनुपम  सिन्हा
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तमाम उम्र जलाये हैं खून ए दिल के चिराग

यूँ ही नज़र नहीं आती सजी सजी रातें |
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जिन पर लिखी हुई थी मोहब्बत की दास्ताँ

वो चाक चाक पुर्जे हवा में बिखर गये

-----  बशीर बद्र
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खबर नहीं मुझे यह जिन्दगी कहाँ ले जाए

कहीं ठहर के मेरा इंतज़ार मत करना।

----   मुनव्वर राना
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अपने अपने तौर पर सबने पहचाना मुझे,

नेक ने नेक और बद ने बद जाना मुझे।

----  सुनील ( डबल गेम )
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दिल नाउम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है

लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
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आँख में पानी रखो , होठों पे चिंगारी रखो ,

ज़िंदा रहना है तो , तरकीबें बहुत सारी  रखो ।

ले तो आये शायरी बाज़ार में राहत मियाँ

क्या ज़रूरी है की लहजे को भी बाज़ारी  रखो ?

----राहत इन्दौरी
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दर्द जब तेरी अता है तो गिला किससे करें

हिज्र जब तूने दिया है तो मिला किससे करें ।
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भुला भी दे उसे जो बात हो गई प्यारे

नये चराग़ जला,

रात हो गई प्यारे!

---- (हबीब जालिब )
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किसने दस्तक दी है दिल पर कौन है ?

आप तो अन्दर हैं, ये बाहर कौन है ?

-- राहत इन्दौरी
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सारी फितरत तो नकाबों में छुपा रखी थी

सिर्फ तस्वीर उजालों में लगा रखी थी

-- राहत इन्दौरी
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रुखसत हो गए तुम बिना किसी लिहाज़ के,

महफ़िल जवाँ थी, पर अफ़सोस कमबख्त हो तुम मिजाज़ के |
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गुज़रेंगे जाने वाले, मन्ज़िल युं ही रहेगी।

अफ़सोस हम ना होंगे, महफ़िल युं ही रहेगी।

-----साभार : एजेन्ट विनोद
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जिस धज से कोई मकतल से गया ,

वो शान सलामत रहती है,

ये जान तो आनी जानी है ,

इस जान की कोई बात नहीं है।
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जिसे इश्‍क़ का तीर कारी लगे

उसे ज़िदगी क्‍यूँ न भारी लगे

न होवे उसे जग में हरगिज़ क़रार

जिसे इश्‍क़ की बेक़रारी लगे

---- वली दक्कनी
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सितारों के आगे जहां और भी हैं

चमन और भी हैं आशियाँ और भी हैं।

कि शाहीन है तू, परवाज़ काम है तेरा

तेरे सामने आसमां और भी हैं।

---- इकबाल
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तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर,

अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!

ये ग़म के और चार दिन, सितम के और चार दिन,

ये दिन भी जाएंगे गुज़र, गुज़र गए हज़ार दिन |

-----शैलेन्द्र
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आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं

सामान सौ बरस का हैं पल की खबर नहीं
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ज़मीं दी है तो थोड़ा आसमाँ भी दे

मेरे ख़ुदा मेरे होने का कुछ गुमाँ भी दे
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अरमां तमाम उम्र के सीने में हैं दफ्न ,

हम चलते फिरते लोग मज़ारों से कम नहीं

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