Sunday, September 15, 2013

शायरी # 5 ( कुछ सुने कुछ अनसुने )


Via Mubarark Ali

 

1) आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं
सामान सौ बरस का पल की खबर नहीं

-----हैरत इलाहाबादी

2) ज़िन्दगी जिंदादिली का नाम है
मुर्दा दिल ख़ाक जिया करते हैं

----नासिख लखनवी

3) ज़माना बड़े शौक से सुन रहा था
हमीं सो गये दास्तां कहते कहते

----साक़िब लखनवी

4) कुछ तो होते हैं मुहब्बत में जुनूं के आसार
और कुछ लोग भी दीवाना बना देते हैं

----ज़हीर दहलवी

5) करीब है यारो रोज़े-महशर छुपेगा कुश्तों का खून क्योंकर
जो चुप रहेगी ज़ुबाने–खन्जर लहू पुकारेगा आस्तीं का

रोज़े-महशर = प्रलय का दिन

----(अमीर मीनाई)

6) कैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो
खूब गुज़रेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो

(कैस = मजनू)

----- मियांदाद सय्याह (मिर्ज़ा ग़ालिब के शागिर्द)

7) हम तालिबे-शोहरत हैं हमें नंग से क्या काम
बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा

---- नवाब मुहम्मद मुस्तफा खान शेफ़्ता

खंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम अमीर
सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है

---- अमीर मीनाई

9) उम्र सारी तो कटी इश्के-बुतां में मोमिन
आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमां होंगे

---- हकीम मोमिन खां मोमिन

10) हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता

----- अकबर इलाहाबादी

11) लोग टूट जाते हैं एक घर के बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में.

----- बशीर बद्र

12 ) कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा,
मैं तो दरिया हूँ समन्दर में उतर जाऊँगा.

----- अहमद नदीम क़ासमी

13) ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले,
ख़ुदा बन्दे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है.

---- इकबाल

14) चल साथ कि हसरते दिल-ए-मरहूम से निकले
आशिक का जनाज़ा है, ज़रा धूम से निकले

------ मो.अली फिदवी

15 ) नाज़ुक खयालियाँ मिरी तोड़ें उदू का दिल
मैं वो बला हूँ शीशे से पत्थर को तोड़ दूं

(उदू = दुश्मन)

---- ज़ौक

16) ये इश्क नहीं आसां, बस इतना समझ लीजै
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है

--------------- मिर्ज़ा असदुल्ला खां ग़ालिब.

17 ) यहां लिबास की कीमत हैं आदमी की नहीं
मुझे गिलास बड़ा दे, शराब कम कर दे

---- निदा फाजली.

18 ) बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी था
हर शाख पे उल्लू बैठें हैं अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा

----- रियासत हुसैन रिजवी उर्फ ‘शौक बहराइची’

19) हज़ारों ख्वाहिशे ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले

----------- मिर्ज़ा ग़ालिब.

और...

20) कुछ ना कहने से भी छिन जाता हैं ऐजाजे सुखन
जुल्म सहने से भी जालिम की मदद होती हैं..

------ मुजफ्फर वारसी.

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